सपने देखने और उसे पूरा करने की जिद पालने वाली वृंदा दुगर

एक छोटी सी बच्ची थी। उसे हमेशा से क्राफ्ट बनाना, पेंटिंग करना और ग्रीटिंग काड्र्स बनाने का शौक था। साथ ही ढेर सारी किताबें पढ़ने का भी।

बारहवीं की परीक्षा देने के बाद ही उसकी पहली पेंटिंग जब 500 रुपये में बिक जाने का हौसला रखती है तो सोचिए कि वह लड़की कैसी होगी?

वह इतनी खुश और हौसलामंद हो गई थी कि उसे अपनी जिंदगी का लक्ष्य तभी मिल गया।

इस खुशमिजाज और हौसलापरस्त लड़की का नाम वृंदा दुगर है, जिसने अपने बलबूते अपनी मेहनत से नाम और मुकाम कमाया है।

वृंदा दुगर उस हौसले का नाम है, जिसने दो बार ठुकराए जाने के बाद भी थमने और रुकने का नाम नहीं लिया। वृंदा खुद बताती हैं, एक गैलरी मालिक ने मेरे काम को फालतू बता दिया था।

उसके बाद से मेरे अंदर खुद को साबित करने का जुनून सा सवार हो गया। एक अन्य घटना के तहत एक कला प्रतियोगिता के लिए अपनी दो पेंटिंग्स जमा करने मैं एक प्रतिष्ठित नेशनल आर्ट एकेडमी गई थीं।

वहां के क्यूरेटर ने मेरी पेंटिंग्स को खराब बताने के बावजूद भी रख लिया। एक महीने बाद जब मैं अपनी पेंटिंग्स लेने पहुंची तो मैंने देखा कि मेरी पेंटिंग्स वहां शीशे के कमरे में दरवाजे पर लगी थी ताकि दूर से दिख सके। बाद में वहां के सहायक ने बताया कि लोगों को मेरा काम इतना पसंद आया कि उन्होंने उसे इस तरह से लगाया कि सबकी नजर दोनों पेंटिंग्स पर जाए। उस समय मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।

सही मायने में वृंदा की यात्रा उनके सोलो एग्जिबिशन से शुरू हुई, जब वह केवल 19 साल की थी और कॉलेज में पढ़ रही थी। उस समय उनकी चौदह पेंटिंग्स सिर्फ एक दिन में बिक गई थी। उसके बाद ही वृंदा के पास पेंटिंग के ऑर्डर आने शुरू हो गए।

वृंदा बताती हैं, उस दौरान मैं ऑर्डर पूरा करने के साथ ही अपनी पढ़ाई भी कर रही थी। असल में मैं उस समय बहुत खुश थी और उसी का नतीजा है कि मैंने अपनी इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर्स की पढ़ाई अच्छे से पूरी की।

अपने पहले सोलो एग्जिबिशिन के बाद वृंदा ने डिजाइनिंग, प्रिंटिंग और टेक्सटाइल की बारीकियों को ऑनलाइन रिसर्च और यूट्यूब वीडियो के माध्यम से सीखा।

अपने पोर्टफोलियो के साथ जब उन्होंने रतन टेक्सटाइल्स से संपर्क साथा तो उन्हें वृंदा का काम पसंद आया। वृंदा कहती हैं, उन्होंने ने ही मुझे डिजाइन के बारे में शुरुआत से बताया।

तभी मेरे दिमाग में आर्ट बाय वृंदा का आइडिया आया। आज मैं भारत और विदेश दोनों जगह के लोगों के पर्सनल कलेक्शन्स पर काम कर रही हूं। मेरे पेंटिंग्स राजस्थान के विभिन्न नामी होटलों और रिजॉट्र्स की दीवारों पर भी लगे हैं। सूरत की एक टेक्सटाइल कंपनी के साथ मैंने साझेदारी भी की है, जो बॉलीवुड और सेलिब्रिटी डिजाइनर मनीष मल्होत्रा के साथ करीब से जुड़े हुए हैं। इनके साथ मिलकर मैं जयपुर में एक डिजाइनर स्टूडियो सेट कर रही हूं, जिसकी मैं डायरेक्टर और क्रिएटिव हेड हूं।

वृंदा की कला उन्हें रुकने नहीं देतीं। तभी तो इस क्षेत्र में दिनोंदिन आगे बढ़ रहीं वृंदा अपने मन को खोलते हुए बताती हैं, मैं यह मानती हूं कि यह सब करना आसान नहीं था।

कोलकाता में जन्मी एक मारवाड़ी हूं, जिसका पालन- पोषण बेंगलूरू में और बाद में जयपुर में हुआ। मेरे मम्मी- पापा कला और डिजाइनिंग में मेरे करियर को लेकर खुश नहीं थे लेकिन मैंने खुद को साबित करने के लिए उनसे छह महीने मांगे।

उनकी भी चाहत थी कि मैं शादी कर लूं लेकिन मेरी प्राथमिकता में अपना बिजनेस शुरू करना और अपनी पसंद के क्षेत्र में नाम कमाना शामिल था।

मेरे लिए यह आत्म-सम्मान का मामला भी था। मैं जानती थी कि मैं अपने टैलेंट पर भरोसा कर सकती हूं। मुझे इसके लिए किसी पुरुष की आवश्यकता नहीं थी।  

उस समय वृंदा ने पारिवारिक आयोजनों में जाना छोड़ दिया था क्योंकि बात कहीं न कहीं से आकर उनके विवाह या काम पर रुक जाती।

स्वयं को अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा बताने वाली वृंदा आगे कहती हैं, कम काम और परिवार की ओर से बढ़ते दबाव के बीच मैंने सोशल मीडिया पर शीरोज को देखा और जाना कि किस तरह से ये लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रहे हैं। मैंने यह भी देखा कि यहां स्टार्ट- अप से लेकर आर्ट एंड रिलेशनशिप, कुकिंग सबके लिए अलग कम्यूनिटी बनी हुई है। इसने मुझे उत्साहित किया और मैंने आर्ट एंड क्राफ्ट कम्यूनिटी को ज्वाइन कर लिया।

उसके बाद से मुझे जो रिस्पॉन्स मिला, उससे मैं खुशी से भर गई। इसने कई मौके देकर मेरी यात्रा में योगदान दिया है।

आज मेरा परिवार मुझ पर गर्व करता है। मेरे डिजाइन स्टूडियो को तैयार करवाने में मेरे पापा सहयोग कर रहे हैं। जब मैं अपने पापा के चेहरे पर अपने लिए गर्व का भाव देखती हूं तो मेरे अंदर जीत, खुशी, संतुष्टि और स्व- मूल्य के भाव अपने आप आ जाते हैं।

खुद को सीधी- सादी, भरतनाट्यम  डांसर, योगा उत्साही और किताबी कीड़ा कहने वाली वृंदा 600 किताबों की लाइब्रोरी वाले घर में रहती हैं । अपने बचपन के दोस्त से विवाह के बंधन में बंधकर जीवन का नया अध्याय शुरू करने जा रही वृंदा युवाओं को संदेश देती हैं, हमेशा अपने दिमाग और जोश के साथ दिल की सुनो क्योंकि जुनून सब पर हावी हो जाता है। अपने सपनों को पूरा करने के लिए धैर्य और कड़ी मेहनत करने की इच्छा ही चाहिए।

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इस लेख के बारे में कुछ ज़रूरी बातें​ -

वृंदा दुगर​ का इंटरव्यू, पुरस्कार विजेता और स्वतंत्र पत्रकार महिमा शर्मा द्वारा किया गया था । यह लेख केवल उनके अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है ।

आप यहाँ पर वृंदा दुगर​ का अंग्रेजी लेख पढ़ सकती​ हैं |


Kanika Gautam
An ardent writer, a serial blogger and an obsessive momblogger. A writer by day and a reader by night - My friends describe me as a nocturnal bibliophile. You can find more about me on yourmotivationguru.com

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