जब बात भोजन की आती है, तुरंत, बहुत सारे शोध और सिद्धांत हमारे दिमाग में आने लगते हैं। आज के समय में जब दुनिया प्राचीन और वैश्विक भोजन की आदतों के बीच फंसी है, ऐसे में तथ्यों को उनके मूल रूप से समझाना एक बहुत ही आवश्यक और बड़ी राहत के रूप में देखा जा सकता है।
ऐसी ही एक महिला, सुप्रसिद्ध पोषण विशेषज्ञ रुजाता देवीकर हैं, जो भोजन को लेकर फैले मिथकों को तोड़ती हैं और आपको अपनी मूल आदतों में वापस झाँकने को कहती हैं। हमने उनसे उनके प्रोफेशन और वह चुनौतियां जिनका उन्होंने सामना किया के बारे मैं और उनकी कहानी पर सामान्य तौर पर बात की।
बडेÞ शब्दों में, करीना, इस किताब को लिखने की प्रेरणास्त्रोत हैं। करीना, बडे अक्षरों में, इस किताब को लिखने की प्रेरणा है। उसकी गर्भावस्था और वजन कम करने को लेकर उसकी दीवानगी ने इस किताब को लिखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय नजरिये से भी गर्भावस्था के बारे में बताया जाना आवश्यक है। हमारे पास पुराने जमाने के तिमाही विशिष्ट परंपरागत नुसखे हैं जो प्रत्येक मां अपनी बेटी को मुहंजुबानी बताती है और वह इस किताब के लिये बड़ा स्त्रोत हैं। इसमे गर्भावस्था के प्रत्येक चरण और यहां तक की प्रसव के बाद के लिये भी भोजन योजनाएं, नित्य व्यायाम, और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न मौजूद हैं।
मेरी शुरूआत एक बहुत समान्य मुंबई कहानी की तरह हुई। यदि आप अचानक मुंबई की सड़कों से अचानक किसी व्यक्ति को चुनें तो तो शायद उसका प्रोफाइल ठीक उसी तरह का हो सकता है- बहुत ही मध्यम वर्ग से आगे बढ़कर अपने दम पर खड़ा होकर अपनी पहचान बनाने वाला। तो यहां रहने वाले (जिन्हें स्ट्रीट स्मार्टर कहा जाता है) से आप यह बड़ा सबक सीख सकते हैं कि जब आपकी जेब में पैसे न हों आप खुद को कम न समझें और आप सिर्फ इसलिये खुद को गंभीरता से न लें क्योंकि आपके पास कुछ पैसे हैं।
नाम, प्रसिद्धि और सफलता तो चंचल है और आती-जाती रहती है, जबकि काम के साथ ऐसा नहीं है। आपके संघर्ष करने से लेकर संघर्ष पूरा होने तक एकमात्र यही है जो स्थिर है और यही एक चीज है जो मायने रखती है।
यह जेन कहावत की तरह है - कुछ पाने से पहले, लकड़ी काटें और पानी डालें। कुछ पाने के बाद, लकड़ी काटें और पाली डालें। काम मायने रखता है, नाम नहीं।
भारतीय समाज के अर्न्तगत, हमारे पास एक सहज अपवाद कार्यक्रम है। जब आप दूसरी या तीसरी कक्षा में होते हैं, आपके माता-पिता और आपके आसपास का समाज सोचता है (स्कूल परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर) कि आप डॉक्टर या इंजीनियर की तरह नायक बनने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान नहीं हैं। आप एक शिक्षक, बैंकर आदि बनने के लिए औसत से जरा भी अधिक समझदार नहीं हैं।
तो बहुत ही शुरूआती जीवन में, आप यह सोचते हैं कि आपके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है, लेकिन जहां आप अर्थ और उद्देश्य देखते हैं वहां आगे बढ़ने का लक्ष्य रखें। एक तरह से, एक औसत और एक औसत से नीचे का छात्र होना एक बड़ा आशीर्वाद है, क्योंकि यह आपको खुद की पहचान करने के रास्ते पर ले आता है, आपको खुद के नेतृत्व का पालन करने का साहस देता है और यह परिवार और समाज के दबाव से आपको मुक्त करने का लाभ देता है, क्योंकि कोई भी आपके किसी भी तरह से सफल होने की उम्मीद नहीं करता। यदि आप इस ओर देखेंगे, यह अवसरों से भरी एक सोने की खान है, यदि आप इसे सही तरीके से करते हैं तो आप अनंत लोगों पर अपनी छाप छोड़ सकते हैं।
यदि आप मेरे 10 साल के भतीजे से पूछेंगे तो वह आपसे कहेगा कि प्रत्येक लड़के के अंदर एक लड़की है और प्रत्येक लड़की के भीतर एक लड़का है। मेरी यात्रा मेरे जीवन में आये बहुत से लोगों का सामूहिक प्रयास रही है, लेकिन उनमे से ज्यादातर मेरे ग्राहक (क्लार्इंट)थे। करीना, जिन्होंने 2007 में मुझे वापसी का रास्ता दिखाते हुए कहा, प्रशंसा अक्सर खुद को आलोचना के रूप में प्रस्तुत करती है। अनिल अंबानी, जिन्होंने मुझे यह समझने में मदद की कि कुछ भी प्राप्त करने का एकमात्र तरीका समय से पहले योजना बनाना है- उस तरफ, उस पल में, आप सिर्फ कार्यान्वित करते हैं और तब आपके पास कोई अच्छा काम न करने का कोई बहाना नहीं होता। लल्ली धवन, जिन्होंने 1999 से 2000 तक मेरे फिल्मी ग्राहकों को भेजे जाने वाले पाठ संदेशों को भी लिखवाया, ताकि मैं अपना लहजा ठीक कर सकूं, मेरा काम पूरा करूं और एक पेशेवर की तरह दिखाई दूं।
फिर वहां कई महिलाएं हैं, जिनकी गिनती नहीं की जा सकती, जो हमारे आगे रहकर समाज के क्रोध का सामना करती थीं, ताकि बाकी हम सभी स्कूल जा सकें, करियर बना सकें, पैसा कमा सकें और हमारी एक अपनी जिंदगी होना जरूरी हो। रमाबाई रानाडे, सावित्रीबाई फुले और कई अन्य महिलाएं और पुरुष, जिन्होंने एक अधिक समान समाज बनाने को लेकर आवाज उठायी और हमारी हितों, अधिकारों की रक्षा की।
उनके बिना, महिलाओं के पास वो स्वतंत्रता नहीं होती जो आज हमें मिली हुई है। और इसलिये, एक देश और समाज के रूप में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे खोये नहीं हैं, कि उनके बलिदान व्यर्थ नहीं गये हैं और हमारे देश में महिलाओं और कन्या बाल भ्रूण की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा और कानून के संबंध में जिन भी उपायों की आवश्यकता होती है उन्हें लागू किया जाता है।
ईमानदारी से, कुछ भी नहीं। सन 2009 में, मैं लॉस वेगास, संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘वूमन इन फिटनेस’ विषय पर आयोजित एक ब्रेकफास्ट मीटिंग में शामिल हुई थी। और चर्चा के बीच कहीं पर, स्पीकर ने मेरी ओर इशारा किया और कहा, आओ और उन कठिनाइयों को बताओ जिनमें से आप होकर गुजरी हैं। इस विषय में मैं एकमात्र भारतीय या भूरी थी। विकासशील दुनिया के एक व्यक्ति के रूप में, उन्होंने यह मान लिया था कि मैं जहां हूं वहां पहुंचने के लिये मैंने कई सामाजिक मापदंडों से लड़ाई की होगी, लेकिन मैंने उन्हें भी निराश किया।
ऐसी कोई भी चुनौती नहीं है जिनका सामना मैंने महिला होने के नाते किया हो, किसी ने भी मेरी सलाह को सिर्फ इसलिये कम गंभीरता से कभी नहीं लिया क्योंकि मैं एक महिला थी। किसी ने भी मुझे सिर्फ इसलिये कम भुगतान कभी नहीं किया कि मैं एक महिला थी। मगर वेगास में उस सुबह मैंने जाना कि फिटनेस वर्ल्ड में यह एक गति-विरोध था। तथाकथित विकसित दुनिया में, महिलाओं को अपनी बात सुनाने और गंभीरता से लिये जाने के लिये कड़ी लड़ाई लड़नी पड़ती है। यहां तक कि, हाल ही में अमेरिका में अपना व्यवसाय करने वाली लड़कियां खबरों में थीं जो सिर्फ इसलिये ई-मेल पर आदमी के रूप में हस्ताक्षर करती थीं ताकि उनके काम को लोग गंभीरता से लें। इसलिये वहां भी कुछ बदलाव नजर नहीं आता।
मेरी अधिकतर चुनौतियां व्यवसाय से संबंधित थीं कि मैं लोगों को यह बात कैसे समझाऊं की मैं क्या करती हूं और उसका महत्व क्या है और मेरी सलाहें या सिफारिशें स्वास्थ और पोषण विज्ञान में आधुनिकतम थीं (इसलिये वजन घटाने, भोजन और फार्मा उद्योग के प्रचार से अलग लगती हैं), मैंने जो मकान खरीदा है उसकी ईएमआई चुकाने के लिये पैसे किस तरह से कमाऊं, ग्राहकों का शेड्यूल कैसे तय करूं कि यातायात आदि की समस्या के बावजूद उनके पास समय से पहुंच सकूं।
नहीं, लेकिन फिर लोग मुझे बताते हैं की शायद ऐसा मुंबई की वजह से है, इसलिये मैं आत्मविश्वास के साथ नहीं कह सकती हूं। यहां हमारे मूल लोग कोली हैं और प्रत्येक (खासकर वह जो लोकल ट्रेन से यात्रा करते हैं) जानते हैं कि यह उनकी महिलाएं हैं जो व्यवसाय चलाती हैं, पैसे को संभालती हैं, सोने के सभी आभूषण पहनती हैं। यदि आपने कोशिश की और कोली महिला से चेन छीन ली, तो वह बिना पसीना बहाए आपको टुकड़ों में तोड़ देगी। तो एक तरह से, महिलाएं और धन या महिलाएं और शक्ति, एक स्वीकार्य मानक है, यह अच्छा है।
समस्या यह है कि गौण गतिविधि (फ्रिंज) व्यवसाय, जैसा मेरा है, को गंभीरता से नहीं लिया जाता। हालांकि इसमे नाटकीय रूप से बदलाव आ रहा है, और इस बात को स्वीकार न करना मेरी मूर्खता होगी। लेकिन हां, मेरा संघर्ष यह था कि कोई भी फ्रिंज व्यवसाय के लिये मेरी आर्थिक मदद नहीं करना चाहता था। 2004 में एक जिम की स्थापना के लिए मेरे 5 लाख रुपये के ऋण को स्वीकृत होने में 45 दिन लगे जबकि मेरे सभी कागजात पूरे थे और मैंने जमानत के तौर पर लगभग 20 लाख रुपये का एक फ्लैट भी रखा था। हालांकि आज हर कोई फिटनेस को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी के रूप में देख रहा है, लेकिन कई अन्य व्यवसाय हैं जो मुख्यधारा में जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं और अपने पैरों पर खड़ा होने के लिये आवश्यक धन हासिल करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
और तब शीरोज, आपके जैसी मुख्यधारा वाली वेबसाइटें हैं जो उद्यमियों, महिला उद्यमियों को बुलाता है। लगभग महिलाओं की तरह लगने वालों ने किसी तरह से शीर्षक पर कब्जा कर लिया जिसका अर्थ केवल पुरुषों के लिये होता है। इसलिये अनजाने में, हर सभी उस खेल को खेलते हैं और हमें इसे रोकना होगा। (इशारा समझे!) अब एक तीसरा लिंग है, कल चौथा हो सकता है और कौन जानता है पांचवा। स्कॉटलैंड पहले से ही लिंग किन्नर बॉथरूमों के लिये योजना बना रहा है और इस समय हम सीखते हैं कि मनुष्य सिर्फ मनुष्य हैं, न कि लिंग, दौड़, धर्म आदि।
यहां बिल्कुल भी टकराव नहीं है। मेरा काम मेरा निजी जीवन है और मेरा निजी जीवन मेरा काम है। मुझे दोनों में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। यह दोनों ही एक-दूसरे के स्वाभाविक विस्तार हैं और यह पूरी संतुलन क्रिया अधिक मूल्यवान है। मैं अपने परिवार में चौथी पीढ़ी की कामकाजी महिला हूं, मेरी मां ने सेवानिवृत होने से पहले 35 साल तक काम किया था, और 60 वर्ष की आयु के बाद, उन्होंने रसोई काम करते हुए रसायन विज्ञान विषय में एक वक्ता के रूप में अपना करियर बना लिया। मेरे परिवार की अनेक महिलाएं बीएमसी स्कूल शिक्षक हैं- वे मतदान कार्य करती हैं, सर्वे करने के लिये घर-घर जाती हैं, पोलियो टीकाकरण आदि के दिनों में सप्ताहांत में भी कार्य करती है।
एक परिवार के रूप में, हम उन्हें भूला नहीं सकते, हमें उनके द्वारा स्कूल के घंटों के बाद भी किये गये कार्य पर गर्व है। यह परिवार में उठने वाली एक सुरक्षा की भावना है जो उस महिला को भूला नहीं सकते क्योंकि उन्हें गर्म पकाये हुए खाने और उसके द्वारा परोसे जाने की आवश्यकता होती है। लेकिन इसके बजाये, जब वह वह दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाकर वापस लौटे, उसके लिये गर्म खाना और गर्म चाय तैयार रखना चाहिये।
वास्तव में गेंद बडेÞ पैमाने पर पुरुषों और समाज की अदालत में है। क्या हमे समर्थन करने और महिलाओं के जश्न मनाने के लिये हमारे पास ऐसा कुछ है या क्या हम ऐसे तरीके से बने हैं जो हमारे महिला विकास के प्रत्येक सपने को खतरे में डाल देगा?
सत्यम वाचा, धर्मामचार - सच बोलो और अपने धर्म या सिद्धांतों से जीवन व्यतीत करो। कम से कम यही काम है जो मैं रोज करती हूं।
देशीय खाओ, वैश्विक सोचो (देश का भोजन करो, विश्व के बारे में सोचो)
गर्भवती होने के संबंध में, बच्चे होने के लिये एक 'सही' समय क्या है? आप क्या मानती हैं।
सही समय तब है जब आप अपने दिल की बात सुनते हैं और किसी संदर्भ सीमा या सामाजिक अपेक्षाओं के लिए नहीं जो बताती हैं कि आपके बच्चा, या फिर शादी कब करनी चाहिये।
अब नहीं, तो कब? यदि अब नहीं, तो कब? अपनी शर्तों पर जीवन जीने में कभी देर नहीं होती। परिणाम तब बहुत अच्छे होते हैं जब वह आपकी पंसद से आपके द्वारा बनाये गये होते हैंं और आपके लिये आपके पिता, भाई, पति या बेटे द्वारा नहीं बनाये गये होते हैं।
गर्भावस्था के आहार युक्तियों और सभी के बारे में और अधिक जानने के लिए स्टोर्स और आॅनलाइन उपलब्ध रुजाता देवीकर की नई किताब 'गर्भावस्था नोट्स' पढे। रुजाता ने इससे पहले 5 बेस्ट सेलिंग किताबें लिखी हैं और सोशल मीडिया पर उनके काफी अधिक प्रशंसक हैं।
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