यह कहानी उड़ीसा के पल्लीश्री पट्टनायक की है जो विभिन्न विषयों से तीन मास्टर्स के बाद मास कम्यूनिकेशन में पी एच डी हैं और भवानी पटना में एक प्रोफ़ेसर हैं। उनके पति उड़ीसा में काम करते हैं जहाँ उनकी बेटी M.B.B.S. की पढ़ाई कर रही हैं। वे कहती हैं “मुझे कई नौकरियों के लिए अयोग्य घोषित किया गया था।अक्सर मुझे कहा जाता था कि “कोशिश करें, आप एक चपरासी हो सकते हैं।” लेकिन मेरी असफलताओं ने मुझे और अधिक मजबूत बनाया और मैंने उत्कृष्टता के लिए और दृढ़ संकल्प लिया।
मुझे इसे दुनिया को दिखाना था कि भले ही 20 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई, लेकिन वह मेरी ज़िंदगी में सिर्फ एक अल्पविराम था, पूर्ण विराम नहीं । इसलिए मैंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपनी नौकरी की तलाश जारी रखी। मेरे पास कोई स्टडी टेबल नहीं थी, इसलिए मैं अपनी बेटी की नर्सरी डेस्क का इस्तेमाल करती थी। मेरे पास महारत हासिल करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं था।”
आप कहेंगे, 'वाह क्या कहानी है सफलता की’ लेकिन, पल्लीश्री ने याद करते हुए आँसू भरी आँखों से कहा, "मैं 21 साल में एक बच्ची की माँ बन गई, जिसका मेरे ससुराल पक्ष ने आंसुओं के साथ स्वागत किया। मेरी ननद ने मुझे बच्चे को छोड़ देने के लिए कहा। लेकिन मैं अंदर से इतनी टूट चुकी थी कि मैंने विद्रोह करने का फैसला किया। एक प्रेम विवाह में होने के कारण सौभाग्यावश मेरे पास अपने पति का समर्थन तो था। लेकिन मुझे पता था, मेरे पति को आज भी एक बेटा नहीं होने का पछतावा है। सम्पूर्ण भारत इस मानसिकता से ग्रस्त है। ”
पल्लीश्री कहती हैं कि उन्होंने एक स्वतंत्र महिला होने के लिए अपने कौशल को तराशा और अपनी बेटी की सही परवरिश के लिए हर सम्भव संघर्ष किया/ वे कहती है कि उन्हें अपनी बेटी के लिए भी स्वतंत्र होना पड़ा क्यूँकि उसे पितृपक्ष से काफी हद तक किशोरावस्था में भी स्वीकार नहीं किया गया था।
पल्लीश्री, जो कि दस पुस्तकों की लेखिका हैं, कहती हैं “जहाँ मेरी बेटी पढ़ रही है, उससे 500 किमी दूर काम करती हूँ।मुझे पता है कि एक माँ का उसकी बच्ची पर बहुत प्रभाव पड़ता है, भले ही वे दोनों अलग हों"। वे कहती हैं “जब मैं बेरोजगार थी, मुझे पता था कि मैं समय बर्बाद नहीं कर सकती थी। इसलिए इनमें से पांच किताबें मेरे नौकरी में आने से पहले प्रकाशित हुईं और बाक़ी नौकरी में आने के बाद। आधी पुस्तकें ओड़िया भाषा में हैं और बाकी सभी अंग्रेजी। वे कहती हैं कि वे शीरोज़ जैसे विभिन्न प्रसिद्ध ऑनलाइन वेबसायट्स में एक ब्लॉगर हैं ।
पल्लीश्री कहती हैं, "शीरोज़ का अनुभव मेरे लिए बहुत ही ख़ास है। यह मेरी ऊर्जा बढ़ाता है।यहाँ अद्भुत महिलाओं से कई चीजें सीखने को ऐसे मिला जैसे कि मैंने एक मल्टी-टास्क यूनिवर्सिटी में प्रवेश लिया है। मैं बहुत खुश हूँ और अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं हैं ।मैं वर्षों से शीरोज़ जैसे मंच की तलाश में थी जहाँ मैं खुद को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर पाऊँ और मुझे शीरोज़ ऐप मिलने पर बेहद खुशी मिली।”
पल्लीश्री कहती हैं कि वे कुछ नामों का उल्लेख करना चाहती है जिनके प्रति वे आभार व्यक्त करना चाहती है।
"मैं महिलाओं को इस तरह का एक अद्भुत मंच प्रदान करने के लिए पूरी टीम को तहे दिल से धन्यवाद कहना चाहती हूँ।एक साथ हम महिलाएँ एक बहुत बड़ी ताकत हैं। मुझे अपनी जीवन-कहानी को सभी के साथ साझा करने का ऐसा अवसर देने के लिए शीरोज़ को बहुत बहुत धन्यवाद।"
तो पल्लीश्री, शीरोज़ पर सभी के लिए आप एक योद्धा हैं। लेकिन पल्लीश्री वास्तविक में कौन हैं, हम सभी जानने के लिए उत्सुक हैं |
पल्लीश्री कहती हैं “मैं रेड क्रॉस की एक सदस्य हूं और कई चैरिटी संगठनों से जुड़ी हुई हूं। मुझे नियमित रूप से कुछ सामाजिक कार्य करने से ख़ुशी मिलती हैं। यह मुझे बहुत जरूरी किक देता है। मैं एक पेशेवर अनुवादक हूँ (अभी यूनिसेफ प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं)। मुझे एक योग्य परामर्शदाता और एक प्रेरक वक्ता होने में शांति मिलती है। लेकिन इन सबसे बढ़कर, मैं एक सपने देखने वाली महिला हूँ।”
विश्व कैंसर दिवस पर, पल्लीश्री ने समुदाय के सदस्यों के साथ अपनी ज़िंदगी के संघर्ष का वर्णन किया।
“28 दिसंबर 2016 की घटना है जब मैं अपने पति और बेटी के साथ हमारे पासपोर्ट के नवीनीकरण के लिए इंतजार कर रही थी। हमने मलेशिया की यात्रा की योजना बनाई थी। हालांकि मुझे अंदर से अच्छा नहीं लग रहा था। बहरहाल, मैं अपने परिवार के साथ जाने के लिए उत्साहित थी क्योंकि मैं एक ट्रैवल एडिक्ट हूँ ।
अचानक हमें अपोलो अस्पताल से एक आपातकालीन कॉल आया, जहाँ मेरी मेडिकल जाँच की रिपोर्ट मेरा इंतजार कर रही थी। उन्होंने कहा कि सर्वाइकल कैंसर की पुष्टि के लिए कुछ अन्य जाँच की आवश्यकता है। मुझे तुरंत एक स्त्री रोग विशेषज्ञ को देखने के लिए कहा गया। मैं बचपन से ही बहुत ऊर्जावान थी ।धीरे-धीरे, मुझे अधिक थकान महसूस होने लगी, सफेद डिस्चार्ज के साथ अनियमित मासिक चक्र होने लगे और हमेशा बुखार महसूस होने लगा।
मैं उन भाग्यशाली महिलाओं में से हूँ, जिन्हें प्रारंभिक चरण में ही सर्वाइकल कैन्सर के बारे में पता चल गया। मैंने तुरंत ऑपरेशन करवाया और तक़रीबन एक साल तक दवा लिया। मैंने सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए तीन महीने के अंतराल में दो टीके लगवाए। मैं पहले से बहुत बेहतर हूं। बेशक मैंने बाहर आना जाना काफ़ी काम कर दिया है। मैं अपने चिकित्सक की देखरेख में उचित भोजन और एरोबिक्स के साथ अपनी हाइजीन और सेहत का ध्यान रखती हूँ क्योंकि मैं जीना चाहती हूँ ।यदि आपके स्वास्थ्य के साथ कुछ भी अजीब होता है, तो छोटे लक्षणों को अनदेखा न करें। महिलाओं, कृपया 40 वर्ष की आयु के बाद नियमित रूप से स्वास्थ्य जाँच के लिए जाएँ।25 वर्ष की आयु के बाद सर्वाइकल कैंसर के लिए टीकाकरण करवाएँ।”
पल्लीश्री जैसी आम महिला का यह शक्ति और धैर्य का अद्भुत प्रदर्शन हमारी शीरोज़ की महिलाओं को प्रोत्साहित करता है।
अंततः उन्होंने हमें इस ख़ूबसूरत और प्रभावशाली संदेश के साथ अलविदा कहा -
"सपने देखने की और उसके बाद उसका पीछा करने की हिम्मत करें। खुद पर भरोसा रखें। पीछे मुड़कर न देखें। अगर आप बात करना चाहते हैं, तो मैं आपको सुनने के लिए और आपको प्रेरित करने के लिए हमेशा उपलब्ध हूँ।”
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इस लेख के बारे में कुछ ज़रूरी बातें -
पल्लीश्री पट्टनायक का इंटरव्यू, पुरस्कार विजेता और स्वतंत्र पत्रकार महिमा शर्मा द्वारा किया गया था । यह लेख केवल उनके अंग्रेजी लेख का हिंदी अनुवाद है ।
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