‘आप क्या करती हैं?’
मैं बहुत सारे काम करती हूं। मैं एक उद्यमी, गृहिणी और मां हूं और फिर से लगभग छात्र हूं और हां मैं एक शौकिया लेखक के रूप में भी पहचान बना रही हूं।
‘यह तो बहुुत बढ़िया है। आप इतने सारे काम किस तरह से कर लेती हैं ?’
जब मैं लोगों से मिलती हूं तो अधिकतर लोग से मेरी बातचीत की शुरूआत इन सब सवाल-जवाब से होती है। मैं जीवन में बहुत कुछ करना चाहती हूं और मेरी इन इच्छाओं में बढ़ोतरी मुझे उत्साहित करती है। मैं जिस भी व्यक्ति से बात करती हूं वह सोचता है कि मैं अगली पीढ़ी की अच्छी मां हूं जो इतने कामों को एकसाथ संभाल लेती है। लेकिन एक बात जिसे वह नहीं जानते वह यह है कि जितने काम मैं संभालती हूं उनमें संतुलन बनाये रखना मेरे लिये भी संभव नहीं है। क्यों? क्योंकि मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकती।
हां, ऐसे दिन भी होते हैं जब मैं महसूस करती हूं कि सब कुछ मेरे नियंत्रण में है और बूम, घर से आयी एक फोन कॉल कहती है कि मेरी बेटी बुखार में चल रही है और मैं सारा नियंत्रण खो देती हूं। फोन रखने से पहले मैं अपराध बोध में डूब जाती हूं। यही तो युवा माताओं से बनी है- नयी मातृ वृति। यह अपराध की पहचान किये बिना पूरी नहीं होती।
क्या मैं अपने बच्चे के लिये पर्याप्त चीजें कर रहीं हूं? क्या मैं अपने बच्चे के साथ पर्याप्त समय बिता रही हूं? क्या मैं एक अच्छी बहू बन पा रही हूं? क्या मैं एक अच्छी पत्नी बन रही हूं? क्या मैं एक अच्छी महिला बॉस बन रही हूं? क्या बहुत अधिक लक्ष्य बनाकर मैं अपना जीवन बर्बाद कर रही हूं? और अगर मेरे पास इन सवालों का जवाब हां में देने के लिये पर्याप्त ऊर्जा है, तो क्या मैं एक अच्छी इंसान हूं और खुद के लिये कुछ कर रही हूं? नहीं?
एक बात, आपके लिये कुछ करना जरूरी है और मैं ज्यादा नहीं कहूंगी, एक महिला के लिये जरूरी है। यह हमारा पहला सवाल होना चाहिये। दुख की बात यह है कि हमारे लिये यह आखिरी सवाल होता है। यह सबक मैंने सबसे मुश्किल तरीके से सीखा।
मातृत्व के दूसरी ओर प्रसव के बाद होने वाले डिप्रेशन का सामना करने के लिये कोई भी आपको तैयार नहीं करता। हां प्रसव के बाद होने वाले डिप्रेशन की पहचान करने में मुझे एक साल लगा और इससे उबरने में कुछ महीने और लगे। उस दौरान पास करने के लिये चीजें थीं। क्योंकि मैं एक मां नहीं थी या कोई व्यवसाय नहीं चला सकती थी या उन कामों को नहीं कर सकती थी जिन्हें मैं आमतौर पर करती थी। वहां मेरे ठहरने के लिये कोई पॉज विराम बटन नहीं था।
हम डिप्रेशन के बारे में बात कर रहे हैं, यदि आपने इस पीड़ा का अहसास नहीं किया है तो आप कभी नहीं समझ सकतीं कि एक अच्छा सामाजिक जीवन और अधिक बेहतर जांच कराने वाली कैसे डिप्रेशन का शिकार हो सकती है।
इनसाइडर के रूप में कुछ भी मायने नहीं रखता। जितने समय तक आप अपने कमरे में सोती हुई दुनिया से दूर रहेंगी उतना ही आपका जीवन गर्द में जाता रहेगा। दुनिया के लिये मैं वहीं इसांन थी- मैंने काम किया, खाना पकाया और वह सब कुछ किया जिसकी मुझसे आशा की जा सकती थी। मगर मेरे लिये, मेरी दुनिया पलट गयी थी। इस बारे में अपने पति और अपने परिवार को बताने में मुझे एक महीना लग गया। क्योंकि मैं हर किसी के लिये हमेशा गो-टू पर्सन थी।
उस दौरान मुझे अहसास हुआ कि मैं कमजोर, दुखी, असुरक्षित और नाराज हूं। मैने कुछ समय के लिये प्रोफेशनल सहायता की मांग की और मैने सबसे महत्वपूर्ण बात सीखी जो आज तक मेरे साथ जुड़ी हुई है। खुद के साथ सहानुभूति। अपने आप से शुरूआत करें। आपके बच्चों सहित, बाकी सब, इंतजार करेंगे। अपनी बेटी को प्यार करने से पहले उसे खुद को प्यार करने वाली मां की जरूरत है। यदि मैं ठीक नहीं रहूंगी तो अपनी बेटी को स्वस्थ कैसे रखूंगी।
जब मैं लगभग 34 साल की थी तो मुझे पता चला कि मुझे पीसीओडी और 17 पर थॉयराइड की समस्या है। पहले से ही पीएमएस और शीर्ष अवसाद का सामना करते हुए मुझे एक और विपत्ति का सामना करना पड़ा। हां बेशक मैने किया है। मैं रोयी और तब तक रोती रही जब तक मैने मन में ठान नहीं लिया कि ‘बस, अब और नहीं’। मैंने अपने एक दोस्त से बात की जिसने इस समस्या का सामना किया और खुलकर अपनी समस्या बताई। उसने भी यही बात कही, पहले आप। दुनिया इंतजार करेगी।
इसलिये मैंने खुद को एक प्रोजेक्ट के रूप में लिया और अपने शारीरिक स्वास्थ्य और भावनात्मक कल्याण की दिशा में काम करना शुरू कर दिया। मैने लिखना शुरू किया और पाया कि मैं अपनी सभी नकारात्मक भावनाओं को लाभकारी/उपयोगी लेखन की दिशा में ले जा सकती हूं। मैंने जॉगिंग और योगा करना शुरू कर दिया और इसने मेरे जीवन को बदल दिया।
मैंने खुद के साथ समय बिताना सीखा। जिन बातों को मैंने नहीं किया या जिन बातों को मैं कर नहीं सकती थी उन बातों के लिये मैंने न कह दिया।
समय बीता और फिर से जब मुझे अधिक काम मिला, मैं इसमें डूब गयी। लेकिन किसी तरह से मैने इससे बाहर निकलने का रास्ता निकाल लिया। यहां से बाहर निकलने का मेरे पास एक ही तरीका था- कि मेरे पास एक जीवन, सीमित दिन और असीमित सपने हैं और केवल एक व्यक्ति जो या तो इन्हें पूरा कर सकता है या उन्हें छोड़ सकता है, वो मैं थी।
मुझे चुनाव करना था कि मुझे अपना सबसे अच्छा वर्जन बनना है या एक साधारण जीवन जीने के लिये समझौता करना चाहिये। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप खुद पर कितना भरोसा करते हैं। ऐसे दिन भी थे जब मैं सोचती थी कि मैं पहाड़ों को भी हिला सकती हूं और ऐसे दिन भी आये जब मैने सोचा कि मैं बिस्तर से भी बड़ी मुश्किल से बाहर निकल सकती हूं। इन दोनों तरह के दिनों में वो मैं थी। मैने चलने का फैसला किया और मैं तब तक नहीं रूकूंगी जब तक हर चीज को हासिल न कर लूं जिनको मैंने दिल में रखा हुआ है।
आनुक्रमिक बहु-कार्यकर्ता (सीरियल मल्टी-टॉस्कर) : 1, अवसाद : 0