महिला सुरक्षा से जुड़े 15 मुख्य कानूनी अधिकार

देश में विभिन्न प्रकार के अपराधो के लिए बहुत से कानून मौजूद है व उसका पालन करवाने के लिए हमारे पास न्यायपालिका, प्रशासन व पुलिस है। वैसे तो कानून की बात सभी करते हैं लेकिन जब असलियत में कानून का उल्लंघन होने पर उसके विरुद्ध आवाज़ उठाने के नाम पर बहुत कम लोग ही आगे आते हैं खासकर महिलाएं। कुछ महिलाएं तो परिवार का नाम खराब होने के डर से या फिर पुलिस वालों के बुरे व्यवहार के डर के कारण आगे नही आती हैं।

इसके साथ ही एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि भारत देश में अधिकतर महिलाएं अपने अधिकार व महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों के बारे में सही तरीके से जानती तक नहीं हैं व इसी के अभाव में वे उचित कदम नही उठा पाती हैं। इसलिये क्यों न आज इस लेख के माध्यम से सभी महिलाएं अपने लाभ में बने कानूनो व उन्हें दिए गए सभी अधिकारों के बारे में अच्छे से जानें ताकि आने वाले समय में यदि उनके साथ कुछ भी गलत या अत्याचार हो रहा हो तो वे स्वयं अपनी आवाज उठा सकें।

भारत देश में महिलाओं के लिए बने कानूनी अधिकार

#1. नि:शुल्क कानूनी सहायता का अधिकार

एक महिला होने के नाते सबको यह पता होना चाहिए कि आपको भी हर प्रकार की कानूनी मदद लेने का अधिकार है और आप इसकी मांग कर सकती है। दिल्ली उच्च न्यायाल के एक आदेश के अनुसार, जब भी बलात्कार की सूचना दी जाती है, वरिष्ठ अफसर को इसे दिल्ली लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को नोटिस देना पड़ता है। इसके बाद ही कानूनी निकाय (लीगल बॉडी) पीड़ित के लिए वकील का इंतजाम करता है।

#2. बयान दर्ज कराते समय गोपनीयता का अधिकार

आपराधिक प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोशिजर कोड) की धारा 164 के तहत, बलात्कार की शिकार एक महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कर सकती है और जब मामले की सुनवाई चल रही हो तब किसी अन्य को वहां उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है। वह एक सुविधाजनक स्थान पर केवल एक पुलिस अधिकारी या महिला कांस्टेबल के साथ बयान दर्ज करा सकती है।

#3. किसी भी समय शिकायत दर्ज करने का अधिकार

बलात्कार किसी भी महिला के लिए एक भयावह घटना है, इसलिए उसका सदमे में जाना और तुरंत इसकी रपट न लिखाना स्वाभाविक है। वह अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा के खोने के कारण भी डर सकती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि घटना होने और शिकायत दर्ज करने के बीच काफी समय बीत जाने के बाद भी एक महिला अपने खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज करा सकती है।

#4. गिरफ्तार नहीं होने और पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन न बुलाने का अधिकार

सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि महिलाओं को सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है। यदि महिला ने कोई गंभीर अपराध किया है तो पुलिस को मजिस्ट्रेट से यह लिखित में लेना होगा कि रात के दौरान उक्त महिला की गिरफ्तारी क्यों जरूरी है। साथ ही, सीआरपीसी (आपराधिक प्रक्रिया संहिता) की धारा 160 के तहत पूछताछ के लिए महिलाओं को पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया जा सकता है।

#5. जीरो एफआईआर का अधिकार

एक बलात्कार पीड़िता सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश किए गए जीरो एफआईआर के तहत किसी भी पुलिस स्टेशन से अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है। कोई भी पुलिस स्टेशन इस बहाने से एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकता है कि फलां क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता है।

#6. गोपनीयता का अधिकार

भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड) की धारा 228- ए के तहत पीड़ित महिला की पहचान के खुलासे को दंडनीय अपराध बताता है। नाम या किसी भी मामले को छापना या प्रकाशित करना, जिससे उक्त महिला की पहचान हो सके, वह दंडनीय है।

#7. यौन उत्पीड़न मामले हल करने के लिए समिति

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक दिशा निर्देश के अनुसार, सार्वजनिक और निजी हर तरह के फर्म के लिए यौन उत्पीड़न के मामलों को हल करने के लिए एक समिति को स्थापित करना अनिवार्य है।

यह भी आवश्यक है कि समिति का नेतृत्व एक महिला करे और सदस्यों के तौर पर पचास फीसद महिलाएं ही शामिल हों। साथ ही, सदस्यों में से एक महिला कल्याण समूह से भी हो। यदि आप एक इंटर्न हैं, एक पार्ट- टाइम कर्मचारी, एक आगंतुक या कोई व्यक्ति जो कार्यालय में साक्षात्कार के लिए आया है और उसका उत्पीड़न किया गया है तो वह भी शिकायत दर्ज कर सकता है।

यदि आपको कभी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है तो आप तीन महीने के भीतर अपनी कंपनी की आंतरिक शिकायत समिति (इंटरनल कंप्लेंट्स कमिटी) को लिखित शिकायत दे सकती हैं।

#8. विवाहित के साथ दुव्यर्वहार नहीं

आईपीसी की धारा 498- ए दहेज संबंधित हत्या की आक्रामक रूप से निंदा करती है। इसके अलावा, दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 न केवल दहेज देने या लेने के बल्कि दहेज मांगने के लिए भी इसमें दंड का प्रावधान है। एक बार दर्ज की गयी एफआईआर इसे गैर- जमानती अपराध बना देता है ताकि महिला की सुरक्षा को सवालों के घेरे में न रखा जाए और आगे भी उसे किसी प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाया जा सके।

किसी भी तरह का दुव्यर्वहार चाहे वह शाररिक, मौखिक, आर्थिक या यौन हो, धारा 498- एक के तहत आता है। आईपीसी के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 (डीवी एक्ट) आपको संसाधनों का उपयोग करने में सक्षम बनाता है, जो उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह में मदद कर सकता है।

#9. तलाकशुदा का अधिकार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत पत्नी को मौलिक अधिकार है कि वह अपने विवाह के टूट जाने के बावजूद विवाहित नाम का प्रयोग कर सकती है। पूर्व पति के उपनाम का उपयोग करने से तभी रोका जा सकता है, जब वह इसका उपयोग बड़े पैमाने पर धोखा देने के लिए कर रही हो। एकल मां अपने बच्चे को अपना उपनाम दे सकती है।

#10. सहमति के बिना तस्वीर या वीडियो अपलोड करना अपराध

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66 ई गोपनीयता के उल्लंघन के लिए सजा से निपटने और स्पष्ट रूप से सहमति के बिना किसी भी व्यक्ति के निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने से मना करता है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354 सी जिसे वॉयरिज्म सेक्शन के तौर पर भी जाना जाता है, किसी महिला की निजी तस्वीरें को कैप्चर या शेयर करने को अपराध मानता है।

#11. दंडनीय अपराध स्टॉकिंग

निर्भया केस के बाद के कई मामलों में स्टॉकिंग को आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 354 डी के तहत अपराध के तौर पर जोड़ दिया गया। यदि आपका पीछा किया जा रहा है तो आप राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) को एक ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से अपराध की रिपोर्ट दर्ज करा सकती हैं। एक बार जब एनसीडब्ल्यू को इसके बारे में पता चलता है तो वह इस मामले को पुलिस के समक्ष उठाती है।

#12. समान वेतन का अधिकार

समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला श्रमिक दोनों को समान पारिश्रमिक से भुगतान का प्रावधान करता है। यह भर्ती और सेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।

#13. मातृत्व, चिकित्सा और रोजगार से संबंधित लाभ का अधिकार

माातत्व लाभ अधिनियम 1961 प्रसव से पहले और बाद में निश्चित अवधि के लिए प्रतिष्ठानों में महिलाओं के रोजगार को नियंत्रित करता है और मातृत्व लाभ एवं अन्य लाभों के लिए प्रदान करता है।

#14. कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 मानविकी और चिकित्सा आधशर पर पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा गर्भ धारण की समाप्ति के लिए अधिकार प्रदान करता है। पूर्व गर्भाधान और प्री नेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (लिंग चयन पर प्रतिबंध) अधिनियम 1994, गर्भाधान से पहले या बाद में लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है और कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग निर्धारण के लिए प्रसव पूर्व निदान तकनीक के दुरुपयोग को रोकता है।

#15. संपत्ति का अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 पुरुषों के साथ समान रूप से पैतृक संपत्ति विरासत में महिलाओं के अधिकार की मान्यता देता है।

याद रखें आपका उचित जानकारी का होना अति-आवश्यक हैं। एक माँ, पत्नी, बेटी, कर्मचारी और एक महिला के रूप में आपको अपनी सुरक्षा के लिए निर्धारित अधिकारों के बारे में जानना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि आप इनके बारे में जागरूक रहें। जब आप अपने अधिकारों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं, तब आप घर पर, कार्यस्थल पर, या समाज में आपके साथ हुए किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकेंगे।

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Kanika Gautam
An ardent writer, a serial blogger and an obsessive momblogger. A writer by day and a reader by night - My friends describe me as a nocturnal bibliophile. You can find more about me on yourmotivationguru.com

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