अपने पैरों पर खड़े होने का सपना आजकल की करीब-करीब हर लड़की की आंखों में होता है. ऑफिस जाना, मेहनत करना और फिर सफल होने के लिए वो दिनरात एक कर देती हैं. लेकिन जब असल में काम करने चलती है तो उसे पता चलता है कि उसकी ऊर्जा का इस्तेमाल सिर्फ काम में नही होगा. बल्कि उसको तो कई जोड़ी आंखों से भी बच कर रहना होगा. वो आंखें जो सिर्फ देखती नहीं थीं बल्कि शोषण कर रही थीं. मानसिक और शारीरिक शोषण, वही जिसके लिए अब भारतीय कानून भी लड़कियों और महिलाओं का पूरा साथ दे रहा है. अब सिर्फ छूना ही शोषण नहीं कहलाता, गलत नजरिए से देखना भी शारीरिक शोषण ही माना जाता है.
इन सारे मामलों में एक ख़ास बात ये होती है कि ऑफिस में कम करने वाली लड़कियां सबकुछ जानते-समझते हुए भी शांत रह जाती हैं. सामने वाले की गलत हरकतों को इग्नोर करते हुए उसे छोटी बात कह देना लड़कियों के लिए सबसे आसान रास्ता होता है. पर ये सोच बिलकुल गलत है. क्योंकि आज एक की चुप्पी दूसरे के बुरे का कारण बन सकती है. पर हां, ये बात भी सही है कि हर इंसान आपको खराब नजर से देखे, ये भी जरूरी नहीं है. मतलब गलत-सही की तौल ही आपको इन सारे मामलों से बचा कर रख सकती है. कह सकते हैं, ऑफिस में मानसिक और शारीरिक शोषण से खुद को बचा कर रखना इतना भी कठिन नहीं है. बस कुछ बातों को इसके लिए दिल में बिठा कर रखना होगा. इसमें सबसे पहला नियम खुद के साथ कुछ भी गलत ना होने देने की बात दिल में बिठाना है.
आप किस बात को कैसे देख रही हैं, इससे पहले अपने मन का नजरिया जरूर जान लीजिए. कौन किस मकसद से आपके साथ कैसा व्यवहार कर रहा है, ये आपसे पहले आपका मन जान जाएगा. और मन जब आपसे शोषण की बात कहे तो मान लीजिए कि आपके साथ गलत तो हो रहा है. पर ये भी याद रखिएगा आप अपनी बात दूसरों से पहले खुद को साबित कर सकें. क्योंकि कई दफा तो आप गलत करने वाले को बेनेफिट ऑफ डाउट भी देंगी ही.
बात बहुत बड़ी नहीं थी. आपने अपने साथी कर्मचारी की शिकायत भी कर दी थी. पर ये क्या उसके कई लोगों से दबाव पड़वाने के बाद आपने शिकायत वापस ले ली. सोचा चलो छोटी सी बात थी. अगली बार कुछ करेगा तो पक्का नहीं छोडूंगी. पर यकीन मानिए आप अगली बार भी उसे छोड़ देंगी. क्योंकि आप गलत करने वाले को सबक सिखाने के लिए पूरी तरह से दृढ़ नहीं हैं. इसलिए जरूरी है कि बात छोटी हो या बड़ी अपने इरादे पक्के रखिए. क्योंकि छोटी बात के लिए माफ कर देने के बाद सामने वाला आपके साथ कुछ बड़ा नहीं करेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है. इसलिए खुद को गलत के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमेशा तैयार रखिए.
जिस वक्त आपका साथी आपके साथ गलत करे, उसे उसी वक्त आंखों में आंखें डाल कर बताइए कि आपको उसका देखना, छूना या फिर कहना, बिलकुल अच्छा नहीं लगा. ऑफिस के इस साथी को पता होना चाहिए कि आप ऐसा व्यवहार बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेंगी. और इस हरकत को आप शारीरिक शोषण ही मानती हैं. अगर सामने वाले ने सच में आपको आपके साथ गलत नीयत से ऐसा व्यवहार किया होगा तो वो आगे के लिए ऐसा ना करने में ही अपना फायदा समझेगा. और अगर नीयत सही भी थी तो सतर्क तो हो ही जाएगा. और आपकी इस आमने-सामने की इस बात से कई दूसरे खराब मन वालों को भी दूर रहने का मैसेज मिल जाएगा.
शीना ने हाल ही में ऑफिस जाना शुरू किया है. पर उसे अपने एक सीनियर का बार-बार उसके कंधे पर हाथ रख कर बात करना अच्छा नहीं लगता था. कुछ दिन तो ये सिलसिला चलता रहा पर फिर उसने अपने साथी कर्मचारियों को ये बातें बताना शुरू किया. तो उस सीनियर की नीयत सामने आ गई. दरअसल वो सिर्फ शीना के साथ ही नहीं बल्कि काई दूसरी लड़कियों के साथ भी ऐसा ही करता था. जब लड़कियों ने विरोध नहीं किया तो उसने उन्हें कई और तरह से परेशान करना भी शुरू कर दिया. कभी कमर में हाथ डालता तो कभी घर आने का आमंत्रण देता. मतलब अब सिर्फ शीना नहीं बल्कि पांच और लड़कियां उस सीनियर के खिलाफ खड़ी थीं. आपको उसको सबक सिखाने के लिए पूरी एक टीम थी. जो शीना ने किया वो आपको भी करना है. अपने साथ हुए गलत को साथी कर्मचारियों को जरूर बताइए. इस तरह आपको और लोगों के अनुभव भी पता चलेंगे और परेशान करने वाले की अभी तक बनी छवि का भी अंदाजा हो जाएगा. शर्माकर खुद के शोषण को यूंहीं ना जाने दीजिएगा.
भारत में साल 2013 में ही वर्कप्लेस पर शारीरिक शोषण के खिलाफ कानून बनाया जा चुका है. इसके तहत ऑफिस में काम करने दौरान होने वाले शारीरिक शोषण का विरोध और दोषी को सजा दोनों दिलाना आसान हो चुका है. खास बात ये है कि सेक्सुअल हैरेशमेंट ऑफ वीमेन एट वर्क प्लेस एक्ट 2013 सिर्फ कामकाजी महिलाओं को ही नहीं बल्कि स्कूल, कॉलेज, अस्पताल में मरीज और स्पोर्ट इंस्टिट्यूट की महिलाओं के फायदे के लिए भी है.
कानून कहता है कि हर उस कम्पनी में महिलाओं की मदद के लिए एक कमिटी होनी चाहिए जहां कम से कम 10 कर्मचारी काम करते ही हों. इंटरनल कम्प्लेंट्स कमिटी यानी आईसीसी में 50 प्रतिशत महिलाएं भी होनी ही चाहिए. कानून इस बात को मानता है कि महिला घटना के बाद 3 महीने तक अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है. लिखित या बोलकर दी जाने वाली इस शिकायत को महिला के ना कह पाने पर उसके दोस्त, साथी कर्मचारी या फिर पारिवारिक सदस्य भी दर्ज करा सकते हैं. इतना ही नहीं शिकायत के 7 दिन के अंदर आरोपी को नोटिस जारी करने के बाद अगले 90 दिन के अंदर जांच-पड़ताल भी होना जरूरी हो जाता है. फिर इसकी रिपोर्ट भी अगले 10 दिन के अंदर आ जानी चाहिए. इन कानूनी फायदों को आके लिए जानना बेहद जरूरी है.