कर्मचारियों के लिये बना समाप्ति नियम (टर्मिनेशन रूल) किसी भी कर्मचारी के लिये कठिन नियम होता है। किसी भी कर्मचारी की आजीविका इस बात पर निर्भर होती है कि वह एक रोजागार करता है जिससे उसे उन्हें मासिक वेतन प्राप्त होता है और यदि किसी कारणवश यह आजीविका उनसे छीन जाती है तो यह उनकी जिंदगी में अंधकार ला सकता है। हालांकि किसी कर्मचारी की नौकरी की समाप्ति किये जाने के विभिन्न कारण हो सकते हैं और कंपनी इस तरह के फैसले लेने का कारण अपनी तरफ से हमेशा ही उचित ठहराती है।
सौभाग्य से, भारत में हमारे पास ‘रखों और निकालो’ नीति लागू नहीं है, इसलिये पश्चिमी देशों के विपरित भारत में किसी भी कर्मचारी की सेवा बिना नोटिस दिये समाप्त नहीं की जा सकती। किसी भी कर्मचारी की सेवाएं समाप्त करने से पहले नियोक्ता को कानून के तहत कुछ प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक होता है और कुछ मामलों में नियोक्ता को मुआवजे का भुगतान भी करना पड़ता है। किसी कर्मचारी के रोजगार/नौकरी की समाप्ति के लिये नियोक्ता द्वारा भारतीय श्रम कानन कानून का पालन करना आवश्यक है।
इस लेख में, हम किसी कर्मचारी की सेवा समाप्ति किये जाने के तरीके और प्रक्रिया और उनके धन संबंधी अधिकारों को समझाने का प्रयास करेंगे।
भारत में कर्मचारियों को आम तौर पर एक 'श्रमिक’ या गैर-श्रमिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। औघोगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत शब्द श्रमिक को परिभाषित किया गया है और इसके मतलब है किसी भी उद्योग में कार्य करने वाले सभी व्यक्ति। किन्तु श्रमिक में प्रबंधकीय, प्रशासनिक या पर्यवेक्षी भूमिका निभाने वाला कर्मचारी शामिल नहीं होता है। आईडी अधिनियम के तहत दी गयी परिभाषा के अलावा एक श्रमिक और गैर श्रमिक के बीच के अंतर का तय करने के लिये कोई निर्धारित सूत्र नहीं है और किसी कर्मचारी द्वारा किये जा रहे कार्य की प्रवृति के आधार पर, विभिन्न निर्णयों के माध्यम से पद का परीक्षण और स्थापित किया गया है।
एक कर्मचारी जिसे एक श्रमिक माना जाता है वह आईडी अधिनियम द्वारा शासित होगा और उसकी सेवा की समाप्ति आईडी अधिनियम में दिये गये प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिये।
दुर्व्यवहार, बर्खास्तगी या छटनी के कारण रोजगार की समाप्ति हो सकती है।
किसी कर्मचारी द्वारा दुर्व्यवहार किये जाने पर उसकी सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं। ऐसा करने के लिये नियोक्ता को कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करना आवश्यक है। भारत में किसी भी कर्मचारी की सेवाओं को समाप्त करने के लिये कानून के तहत अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की प्रक्रिया निर्धारित की गयी है। इसके तहत किसी कर्मचारी की सेवा समाप्त करने से पहले एक अनुशासनात्मक दल का गठन किया जाना आवश्यक है जो आरोपित कर्मचारी को एक कारण बताओ नोटिस देकर उसको बचाव में अपना पक्ष रखने का उचित अवसर प्रदान करता है। नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष तरीके से कार्यवाही की जानी चाहिये।
कुछ मामलों में, अनुशासनात्मक कार्यवाही का परिणाम बिना नोटिस और कोई मुआवजा दिये बगैर कर्मचारी की बर्खास्तगी का उचित ठहराया जा सकता है। शब्द दुर्व्यवहार के लिये काननू के तहत उन परिस्थितियों और घटनाओं की सूची दी गयी है जिन्हें दुर्व्यवहार में शामिल किया जाता है। यह एक सम्मलित सूची है इसलिये नियोक्ताओं को इसे अपनी कंपनी की नीतियों / सेवा नियमों में शामिल करने का अधिकार है। ऐसी अन्य घटनाएं, जिन्हें वह उपयुक्त समझें, जो उनके व्यापार के कार्यक्षेत्र में होंगी, दुर्व्यवहार में शामिल होंगी। दुर्व्यवहार में जानबूझकर आज्ञा न मानना या आज्ञा का उल्लंघन करना, चोरी, धोखाधड़ी या बेइमानी, जानबूझकर नियोक्ता की संपति को क्षति या नुकसान पहुंचाना, रिश्वतखोरी, आदतन देर से आना या अनुपस्थित रहना, अवैध रूप से हड़ताल और यौन उत्पीड़न करना शामिल है।
सेवा समाप्ति के लिये उपरोक्त प्रक्रिया सभी कर्मचारियों पर चाहे वह श्रमिक हो या गैर श्रमिक पर लागू होती है।
ऐसे कर्मचारी जो श्रमिक नहीं है के रोजगार की समाप्ति उनके रोजगार अनुबंध में दिये गये नोटिस अवधि और राज्य, जिसमें वह कार्य करते हैं की दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम (‘एस एंड ई’) द्वारा शासित होते हैं। सामान्य तौर पर राज्य एस एंड ई सेवा समाप्ति के लिये कम से कम एक महीने का नोटिस या सेवा समाप्ति के बदले भुगतान प्रदान करती है और कुछ मामलों में सेवा समाप्ति के लिये कारण होना आवश्यक है, और कुछ अन्य मामलों में नियोक्ता को रोजगार समाप्त करने के लिए मुआवजे का भुगतान करना पड़ता है। रोजगार अनुबंध के तहत किसी कर्मचारी को दिया गया बर्खास्तगी का नोटिस कानून के तहत निर्धारित नियमों के मुकाबले कम लाभदायक नहीं होना चाहिये।
आईडी एक्ट कर्मचारियों की छटनी करने के लिये किये जाने वाले चरणों को निर्धारित करता है। शब्द छटनी को परिभाषित किया गया है जिसका मतलब है कि अनुशासनात्मक आधार के अलावा, कुछ अपवादों के साथ, किसी भी कारण से एक नियोक्ता द्वारा किसी कर्मचारी के रोजगार की समाप्ति करना।
एक नियोक्ता जो एक ऐसे श्रमिक की छटनी करना चाहता है जो लगातार एक वर्ष से अधिक समय से उसके यहां कार्य कर रहा है, को एक माह का नोटिस (छटनी करने के कारण के साथ) देना होगा या ऐसे नोटिस के बदले श्रमिक को भुगतान करना होगा। छटनी के संबंध में नियोक्ता को निर्धारित समय सीमा में स्थानीय श्रम अधिकारियों को सूचित करना चाहिए।
इसके अलावा, उचित कारणों को छोड़कर छंटनी करने के लिए श्रमिक चुनने के दौरान नियोक्ता ‘सबसे आखिर में आने वाला सबसे पहले जाएगा’ नियम लागू करने के लिए बाध्य होता है। आईडी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार जिस श्रमिक की छटनी की गयी है वह छटनी मुआवजा प्राप्त करने का हकदार है। नियमित नौकरी के प्रत्येक वर्ष के लिए 15 दिनों के वेतन की दर से छटनी मुआवजे की गणना की जाती है। 100 से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले कुछ प्रतिष्ठान (कारखानों, खानों, वृक्षारोपण) कर्मचारी को तीन महीने का लिखित नोटिस दिये बिना, छटनी का कारण बताये बिना या नोटिस के बदले में भुगतान दिये बिना उसकी छटनी नहीं कर सकते।
इसके अलावा छटनी किये जाने से पहले संबंधित सरकारी अधिकारी से पूर्व अनुमोदन लिया जाना चाहिये।
किसी भी कर्मचारी के रोजगार की समाप्ति पर, नियोक्ता को सभी बकाया राशि को स्पष्ट करना आवश्यक है जो सेवा समाप्ति के समय कर्मचारी को देय होती है। इनमें से कुछ भुगतान इस प्रकार हैं:
अन्य बकाया देय हो सकते हैं, और ये रोजगार से रोजगार के लिए अलग-अलग होंगे।
एक कंपनी अपने कर्मचारियों से अधिकतम 8 घंटे का कार्य एक दिन में ले सकती है। इसके अलावा काम करवाने पर कंपनी को उसे भारतीय श्रम कानून के तहत उसे ओवरटाइम के पैसो का भुगतान करना होगा। इसके अलावा परिवीक्षाधीन या अस्थायी कर्मचारियों को कंपनी बिना किसी नोटिस के हटा सकती है लेकिन स्थायी कर्मचारियों के लिए ऊपर बताये गए सभी कानून मान्य होंगे।
उपरोक्त लेख विभिन्न प्रकार के रोजगार की समाप्ति और पृथक्करण वेतन को समझने के लिए जिसके कर्मचारियों के हकदार हैं को समझाने के लिये एक संक्षिप्त आलेख है। हालांकि, मामले से मामले के आधार पर सेवा समाप्ति के प्रत्येक मामले को स्वतंत्र रूप से निपटाया जाना चाहिये।