नवरात्रि का त्यौहार हर व्यक्ति के लिए खास होता (Mata ke 9 Roop ka Varnan) है लेकिन जिसके लिए यह सबसे स्पेशल होता है वे होती है महिलाएं। नवरात्रि का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जब हम सभी महिला शक्ति या यूँ कहे (Navratri Teachings in Hindi) कि महिला सशक्तिकरण की बात करते है लेकिन ऐसा क्यों?
ऐसा इसलिए क्योंकि मातारानी ने अपनी शक्ति तथा विभिन्न रूपों का परिचय देने के लिए अपने 9 रूप धारण किये थे जिनमे से उनका प्रत्येक रूप महिला के अलग-अलग गुणों व शक्तियों का परिचायक (Mata Rani ke 9 Roop) है। इसलिए आज हम नवरात्र पर महिलाओं को मिलते संदेश और उनके 9 रूपों के गुणों का वर्णन आपको देंगे। आइए जाने मातारानी के 9 रूपों का महत्व।
मातारानी का यह रूप माता सती ही कहलाता हैं जिन्होंने भगवान शिव के अपमान पर अग्नि कुंड में कूद कर आत्म-दाह कर लिया था। इनके इस रूप का महत्व यह था कि हमे कभी भी अपने या अपने परिवार के आत्म-सम्मान के साथ समझौता नही करना चाहिए फिर सामने चाहे कोई भी हो।
इसलिए आपके सामने चाहे कोई भी विपदा आये लेकिन जब बात आत्म-सम्मान की आ जाये तब आप कभी भी समझौता ना करे क्योंकि आज समझौता कर लिया तो आगे चलकर इससे भी बड़ा समझौता करना पड़ेगा।
मातारानी का यह रूप हमे हमेशा आगे बढ़ते रहने और तपस्या करने की प्रेरणा देता है। यदि हम मेहनत ही नही करेंगे और परिस्थितियों के आगे हार मानकर बैठ जाएंगे तो फिर कैसे काम चलेगा। इसलिए यदि हमे जीवन में कुछ पाना है और आगे बढ़ना है तो हमे हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए।
माता रानी का यह रूप हमें हमेशा आगे बढ़ने, तप करने तथा त्याग करने की प्रेरणा देता है। जीवन में हमेशा आगे बढ़ते रहने का नाम ही तपस्या है। इसलिए हमेशा कर्म करते रहे और फल की चिंता ना करे।
माता रानी का यह रूप दो कारणों से मुख्य है। पहला कारण तो यह है कि हमे कभी भी दुष्टों या पापियों पर दया या क्षमा की भावना नही रखनी चाहिए फिर चाहे वो कोई भी हो। यदि कोई आप पर अत्याचार करता है या आप पर किसी तरह का दबाव बनाता है तो हमे मुखर होकर उसके विरुद्ध आवाज उठानी चाहिए।
दूसरा रूप उनके लिए है जो गलती से कुछ गलत कर देते है लेकिन उनका मतलब ऐसा कुछ नही होता। ऐसे में हमे उनके विरुद्ध ईर्ष्या की भावना रखने की बजाए उन्हें क्षमा कर एक अवसर और देना चाहिए। इस तरह माता रानी का रूप दंड देने तथा क्षमा करने दोनों का प्रतिनिधित्व करता है।
स्त्री ही इस विश्व व मनुष्य की जननी है और यही शिक्षा मातारानी का यह रूप हमे देता है। स्त्री केवल माता नही बल्कि सभी की जननी है। इसलिए हमे किसी से भी अपने आप को कम नही आंकना चाहिए। स्त्री जब सभी पुरुषों की जननी हो सकती है तो वह कुछ भी कर सकती है।
माता रानी का यह रूप विश्व का निर्माण करने वाला कहा गया है जिसका तात्पर्य उनके द्वारा ही सभी की रचना हुई है। इन्हें भगवान ब्रह्मा के समकक्ष माना गया है। उसी प्रकार हमे हमेशा नयी चीजों का सृजन करते रहना चाहिए और इस विश्व को प्रेरणा देनी चाहिए।
माँ कूष्मांडा विश्व की जनक कही गयी है तो माता स्कंद का यह रूप हमे अपनी संतान की रक्षा करने और उसे सब दायित्व सिखाने की प्रेरणा देता है। अब यदि हम जननी है तो आगे की भावी पीढ़ी का निर्माण भी हमारे हाथ में ही है। एक संतान अपने पिता या अध्यापकों से इतना नही सीखता जितना उसे उसकी माँ सिखा सकती है।
इसलिए आगे वाली पीढ़ी में किस तरह के संस्कार रोपे जाने है और उनका चरित्र कैसा होना चाहिए जिससे एक सभ्य समाज का निर्माण हो सके, इन सभी का उत्तरदायित्व एक स्त्री के ऊपर ही होता है। हमे अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को कदापि नही भूलना चाहिए।
इनका निर्माण त्रिदेव अर्थात भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने मिलकर किया था ताकि दैत्यों का वध किया जा सके। सीधे शब्दों में कहे तो यह सभी देवताओं व ईश्वर की शक्ति का मिला हुआ रूप था जो अत्यंत शक्तिशाली था। माता रानी का यह रूप हमे शिक्षा देता है कि जब विश्व की अन्य शक्तियां विफल हो जाती है तो वहां एक स्त्री का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
एक स्त्री ही किसी दुष्ट को हरा सकती है। जब पूरे विश्व को कोई रास्ता नज़र नही आता तब एक स्त्री ही उनका उद्धार करने सामने आती है और अपनी शक्ति से सभी पापों का नाश कर देती है। माता रानी का यह रूप हमे यही अद्भुत शिक्षा देकर जाता है।
माता रानी का यह रूप अत्यंत ही भीषण, प्रचंड व भयंकर है जो स्त्री के विपरीत गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि संपूर्ण विश्व में स्त्री की पहचान दयावान, क्षमा करने वाली व सभी को प्रेम देने वाली की है लेकिन माता रानी का यह रूप इन सभी गुणों से विपरीत है।
जब सामने वाला शत्रु प्यार की भाषा ना समझे तथा स्त्री पर अत्यंत अत्याचार करे तब स्त्री को भी वैसा ही रूप धारण करना पड़ता है ताकि पापी को उचित दंड दिया जा सके। आज के समाज में जब स्त्री पर इतना अत्याचार हो रहा है तब यह रूप बहुत ही सार्थक लगता है।
जहाँ एक ओर, माता कालरात्रि अत्यंत भीषण व प्रचंड रूप वाली है तो वही दूसरी ओर, माता रानी का महागौरी रूप उससे एकदम विपरीत गुणों को प्रदर्शित करने वाला है। इस रूप में माता रानी संपूर्ण विश्व पर अपनी कृपा बरसाने वाली और प्रेम करने वाली है।
जहाँ क्रोध, दंड इत्यादि का काम नही होता वहां हम प्रेम, दया इत्यादि भावनाओं से भी सामने वाले को परास्त कर सकते है और उसके हृदय में प्रेम की ज्योत को प्रज्ज्वलित कर सकते है। कुछ इसी तरह की शिक्षा माता रानी का यह रूप हम सभी को देकर जाता है।
माता रानी का यह अंतिम रूप स्त्री के अनेक गुणों का बखान करता है। इसमें बताया गया है कि एक स्त्री सभी गुणों और सिद्धियों से परिपूर्ण होती है और वही संपूर्ण विश्व को यह सिद्धियाँ प्रदान कर उनका उद्धार करती है। एक स्त्री सभी तरह की स्थितियां संभाल सकती है और किसी का भी नेतृत्व करने की क्षमता रखती हैं।
इतना ही नही, एक स्त्री ही बाकि मनुष्यों को इन सभी गुणों में परिपूर्ण कर उनका कल्याण करती है। कहने का तात्पर्य यह हुआ कि एक स्त्री अपने जन्म से ही सभी गुणों को लेकर जन्म लेती है और फिर अपने इन्हीं गुणों के साथ वह बाकि सभी का उद्धार करने में सक्षम होती है।
तो यह थे माता रानी के 9 रूप और उनसे मिलती (Navratri ka Mahatva) शिक्षा। हर स्त्री को माता रानी के इन रूपों को ग्रहण करना चाहिए ताकि संपूर्ण विश्व का कल्याण व उद्धार हो सके। इसी के साथ आप सभी को नवरात्र की शिरोस परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं। अपने विचार नीचे कमेंट में अवश्य रखियेगा।